सोचते-सोचते

सोचते-सोचते "दिल" डूबने लगता है मेरा,
इस, जहान की "तह" में "मुज़फ्फर" कोई दरिया तो नहीं,

रूह को "दर्द" मिला दर्द को "आँखें" ना मिली,
तुझको, महसूस किया है, तुझे देखा तो नहीं,

मेरी "तस्वीर" में रंग और किसी का तो नहीं,
घेर लें, मुझको सब आँखें, मैं तमाशा तो नहीं ।।

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